
भारत ने सिंधु नदी का पानी रोका |
अगर भारत ने सिंधु नदी का पानी रोका तो पाकिस्तान वालों का बहुत बुरा होगा कैसे बुझायेगा अपना प्यास ,
पाकिस्तान इस मामले में वर्ल्ड बैंक से मध्यस्थता करने की मांग कर चुका है इसके अलावा किशनगंज बांध को लेकर भी कानूनी और जांच हो चुकी है |
भारत ने रविवार को पाकिस्तान के खिलाफ एक बड़ी कार्रवाई करते हुए बगलिहार बांध के जरिए चुनाव नदी पर पानी के प्रभाव को रोक दिया |
न्यूज़ एजेंसी पीटीआई ने यह जानकारी दी बता दे कृष्ण गंगा बांध पर भी इसी तरीके का कदम उठाने पर विचार कर रहा है |
बताना होगा कि 22 अप्रैल को आतंकी हमले के बाद भारत सिंधु जल समझौते को स्थगित करने पर और एयर स्पेस बंद करने जैसे कई बड़े पैसे लिए भारत ने पाकिस्तान से आयात पूरी तरीके से बंद कर दिया और कहा था कि पानी को रोकने की किसी की भी कोशिश युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा प्रधानमंत्री इमरान खान और पूर्व मंत्री बिलावल भुट्टो को एक अकाउंट पर बैन लगा दिया है |
वहीं भूतों ने भारत को चेतावनी दी थी | यह सभी नदियां भारत से पाकिस्तान की ओर बहती है |
और इन्हें पाकिस्तान की जीवन रेखा माना जाता है, क्योंकि पाकिस्तान की आबादी का बड़ा हिस्सा इससे प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा है
कि भारत सरकार पहलगाम आतंकी हमले की दोषियों को सख्त सजा देंगे
यह सभी नदियां भारत से पाकिस्तान की ओर बहती है ?
सिंधु जल समझौता 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था। इस समझौते के तहत ऊपर की तीन नदियों – सिंधु, चिनाब और झेलम का पानी पाकिस्तान को मिलना था और नीचे की तीन नदियों – रावि, ब्यास और सतलज का पानी भारत इस्तेमाल कर सकता था। हालांकि 23 अप्रैल को इस संधि को तत्काल प्रभाव से रद कर दिया गया है
1947 तक सिंधु नदी सिस्टम दुनिया का सबसे सिंचित और विकसित सिंचाई सिस्टम हो चुका था।
जब ब्रिटिश गए तब तक यहां के 26 मिलियन एकड़ ज़मीन की सिंचाई नहरों से होने लगी थी।
सिंधु जल समझौता जब हुआ तो भारत की नज़र पानी पर थी। पाकिस्तान की नज़र विश्व बैंक से मिलने वाले पैसे पर।
पाकिस्तान को इसका टैग चाहिए था कि विश्व बैंक ने मदद की, भारत को पानी चाहिए था। दुनिया का सबसे बड़ा राज्य नियंत्रित सिंचाई व्यवस्था यहाँ बन चुकी थी।
इसी इलाके में हरित क्रांति आई, इसी इलाके के पानी को लेकर भारत के भीतर राज्यों में टकराव हुआ, कैसे इसी सिंधु जल सिस्टम की नदियों पर अधिकार को लेकर खालिस्तान की आग भड़काई गई और मामला इंदिरा गांधी की हत्या तक गया।
आसान नहीं है सिंधु नदी जल का इतिहास।
विशेष रूप से जब किसी युद्ध या तनाव की स्थिति में भारत ने यह संकेत दिया कि वह पाकिस्तान जाने वाले पानी को रोक सकता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1947 में भारत के विभाजन के बाद सिंधु नदी प्रणाली, जिसमें 6 प्रमुख नदियाँ — सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास और सतलुज — शामिल हैं, भारत और पाकिस्तान दोनों में बहती हैं। विभाजन के बाद पाकिस्तान को यह डर सताने लगा कि भारत उसके पानी को रोक सकता है, क्योंकि इन नदियों का स्रोत भारत में था। यह डर 1 अप्रैल 1948 को उस समय हकीकत बन गया जब भारत ने पंजाब के कुछ नहरों में पाकिस्तान को जाने वाली पानी की आपूर्ति रोक दी। यह वह विशेष घटना थी जब पहली बार सिंधु नदी का पानी रोका गया।
1 अप्रैल 1948 की घटना
इस घटना का केंद्र बिंदु माधोपुर हेडवर्क्स था, जो रावी नदी पर स्थित है। जब ब्रिटिश भारत का विभाजन हुआ, तो सिंचाई ढांचे को स्पष्ट रूप से विभाजित नहीं किया गया था। उस समय पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र की कृषि इस पानी पर निर्भर थी। भारत ने जब बिना पूर्व सूचना के पानी की आपूर्ति रोकी, तो पाकिस्तान में हड़कंप मच गया। वहां के खेत सूखने लगे, और यह एक तरह का “जल युद्ध” बन गया।
इस घटना के कुछ ही हफ्तों बाद, दोनों देशों के बीच एक अंतरिम समझौता हुआ और भारत ने पानी की आपूर्ति फिर से बहाल कर दी। लेकिन यह साफ हो गया था कि बिना किसी स्थायी संधि के भविष्य में यह विवाद और गहरा सकता है।
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भारत को तीन पूर्वी नदियाँ — सतलुज, ब्यास, और रावी — का पूरा नियंत्रण मिला।
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पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियाँ — सिंधु, झेलम और चेनाब — का उपयोग करने का अधिकार दिया गया।
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भारत को पश्चिमी नदियों पर “गैर-खपत” परियोजनाओं (जैसे बिजली उत्पादन) की सीमित अनुमति दी गई।
युद्ध के समय फिर उठा पानी रोकने का मुद्दा
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1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध और
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1999 के कारगिल युद्ध और
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2016 के उरी हमले के बाद
भारत में यह मांग जोर पकड़ने लगी कि सिंधु जल संधि को रद्द किया जाए या पाकिस्तान को मिलने वाले पानी को रोका जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में कहा था — “रक्त और जल एक साथ नहीं बह सकते”, जिससे यह संकेत मिला कि भारत इस दिशा में कड़ा कदम उठा सकता है।
हालांकि, भारत ने आज तक सिंधु जल संधि का उल्लंघन नहीं किया, लेकिन 1 अप्रैल 1948 को सिंधु नदी का पानी रोके जाने की घटना आज भी एक ऐतिहासिक मोड़ मानी जाती है जिसने भविष्य के भारत-पाक संबंधों की दिशा तय की।